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कविता

ग्राउंड, 1

अनसतासिस विस्तोनतिस

अनुवाद - रति सक्सेना


अपनी धुँधली आँखों के ऊपर
बुरे कुत्तों की आकृतियाँ उड़तीं हैं
कल की आग से निकली राखें
खाल के भीतर तक घुपा खालीपन
ज्ञान के फेंटम
मरे हुए क्रोमोसोम्स
और पत्थरयुगीन बदलाव रहित
जड़ जमाए हैं वहाँ, तुम यहाँ

कल तुम ठीक कर लोगे
तुम्हारी खाल में रोपा गया भविष्य
रेंगता हुआ, तुम्हारा मांस कुतरता है
क्योंकि तुम दरार का खुलाव हो
आने वाला दिन एक नदी था
और अब केवल अंधकार है
केवल अँधेरे और नींद में चलने वाले की सीढ़ियाँ
आरा उन सलवटों पर इस्त्री करता है
इसके बाद कुछ नहीं, और उसके बाद
समय के पिघलने के लिए
और प्राकृतिक दृष्यों के लुप्त होने की शुरुआत के लिए
बड़ी मौत की घनघनाहट तुम्हे बधिर कर देती है
तुम्हारे समय को हड़प लेती है, भविष्य की फंतासी
तुम्हारे चिथड़ा कपड़े उड़ रहे हैं
जलप्रपात तुम्हारे विचार छेद रहे हैं
ऐसी रात में, फूस का खेत
और तुम्हारे सिर के ऊपर आसमान
एक मटमैला ओढ़न

 


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